शिजोफ्रेनिया से संबंधित नये जीन का पता लगा
सेहतराग टीम
करीब 20 साल के अनुसंधान के बाद ऑस्ट्रेलियाई एवं भारतीय वैज्ञानिकों ने एक नए जीन का पता लगाया है, जिसका सीधा संबंध शिजोफ्रेनिया से है। शिजोफ्रेनिया व्यक्ति की स्पष्ट रूप से सोचने, महसूस करने और व्यवहार करने की क्षमता को प्रभावित करता है।
ऑस्ट्रेलिया में क्वींसलैंड विश्वविद्यालय से वैज्ञानिकों और भारतीय अनुसंधानकर्ताओं की एक टीम ने 3,000 से अधिक व्यक्तियों के जीनोम (जीन का समूह) का अध्ययन किया और पाया कि शिजोफ्रेनिया से पीड़ित लोगों में विशेष आनुवंशिक भिन्नता होने की संभावना है।
चेन्नई के शिजोफ्रेनिया रिसर्च फाउंडेशन के संस्थापक एवं निदेशक रंगास्वामी थारा ने भारतीय अनुसंधानकर्ताओं का नेतृत्व किया।
अध्ययन ‘जेएएमए साइकाइट्री’ में प्रकाशित हुआ है। विश्वविद्यालय के ब्रायन मोवरी ने कहा कि इस तरह का अध्ययन इससे पहले यूरोपीय वंशजों पर किया गया था, जिसमें 100 से अधिक लोगों में शिजोफ्रेनिया से संबंधित लक्षण पाये गये।
मॉवरी ने कहा कि विभिन्न हिस्सों में मौजूद अन्य वंशजों के जीनोम का अध्ययन इस बीमारी के साथ उसके मजबूत संबंध को रेखांकित कर सकता है।
उन्होंने कहा, ‘अध्ययन में ‘एनएपीआरटी1’ नामक जीन की पहचान की जो विटामिन बी3 मेटाबोलिज्म में शामिल एक एंजाइम को एनकोड करता है। हमलोग यूरोपीय वंशज के शिजोफ्रेनिया से पीड़ित इन मरीजों के व्यापक जीनोम आंकड़े में इस जीन का पता लगा सकते हैं।’
मॉवरी ने कहा, ‘जब हमने जेब्राफिश में एनएपीआरटी1 जीन पर प्रहार किया तक मछली के मस्तिष्क का विकास प्रभावित हुआ। हमलोग अब इस बात को और गहरायी से समझने पर काम कर रहे हैं कि यह जीन मस्तिष्क में कैसे काम करता है।’ उन्होंने कहा कि शिजोफ्रेनिया में काफी हद तक बदलाव आनुवंशिक कारकों के चलते होता है।
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